Paper Details
भारतीय संविधानः डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के दृष्टिकोण से एक गहन समीक्षा
Authors
डॉ. गीता कुमारी
Abstract
संविधान लागू होने के बाद से, भारत ने सामाजिक संरचना में कई बदलाव देखे हैं। इन बदलावों के साथ, संविधान में भी समय≤ पर संशोधन किए गए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह समय की आवश्यकताओं के अनुरूप बना रहे। भारतीय संविधान ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों को बढ़ावा देकर एक प्रगतिशील समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।संविधान के निर्माण के समय, यह स्पष्ट था कि भारतीय समाज की विविधता और उसकी जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा दस्तावेज तैयार किया जाए जो न केवल तत्कालीन चुनौतियों का समाधान कर सके, बल्कि भविष्य में आने वाली कठिनाइयों का भी सामना कर सके।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने संविधान सभा में इस बात पर जोर दिया कि संविधान केवल एक लिखित दस्तावेज नहीं होना चाहिए, बल्कि यह एक जीवंत उपकरण होना चाहिए जो समाज के सबसे कमजोर वर्गों को न्याय और समानता सुनिश्चित कर सके। अंबेडकर के दृष्टिकोण ने संविधान को सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के आधार पर तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने संविधान में ऐसे प्रावधानों को शामिल करने पर जोर दिया जो समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्गों को समान अधिकार प्रदान कर सके। उनके विचारों ने भारतीय संविधान को एक ऐसा दस्तावेज बनाया जो सामाजिक और राजनीतिक समानता की दिशा में अग्रसर हो सके। इस प्रकार, भारतीय संविधान न केवल एक कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह एक मार्गदर्शक प्रकाशस्तंभ है जो समाज को न्याय, समानता और मानवाधिकारों की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। डॉ. बी.आर. अंबेडकर की दृष्टि और उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत आज भी भारतीय संविधान की नींव को मजबूत बनाए हुए हैं और समाज के समग्र विकास में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
Keywords
सरकार, संविधान प्रमुख, लोकतंत्र संविधान, संविधान का आकार
Citation
भारतीय संविधानः डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के दृष्टिकोण से एक गहन समीक्षा. डॉ. गीता कुमारी. 2024. IJIRCT, Volume 10, Issue 3. Pages 22-26. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=2406059