Paper Details
दलित साहित्य में सामाजिक न्याय की अभिव्यक्ति
Authors
चेरुकूरि हरिबाबु
Abstract
दलित साहित्य एक ऐसा साहित्यिक आंदोलन है, जो समाज में हाशिये पर रखे गए वर्गों, विशेष रूप से दलित समुदाय, की पीड़ा, संघर्ष, और स्वाभिमान की अभिव्यक्ति के रूप में उभरा है। इस साहित्य का उद्देश्य केवल साहित्यिक योगदान देना नहीं है, बल्कि समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव, असमानता और शोषण को उजागर करना और सामाजिक न्याय की मांग करना भी है। दलित साहित्य के विभिन्न विधाओं—कविता, कहानी, उपन्यास, आत्मकथा आदि—में दलित समुदाय के संघर्षों, उत्पीड़न, और उनकी आशाओं का सजीव चित्रण मिलता है।
इस शोधपत्र में दलित साहित्य में सामाजिक न्याय की अभिव्यक्ति पर प्रकाश डाला गया है। यह साहित्य दलितों की सामाजिक स्थिति सुधारने, उनके अधिकारों की रक्षा करने, और समाज में समानता लाने के उद्देश्य से लिखा गया है। अध्ययन से पता चलता है कि दलित साहित्य ने न केवल साहित्यिक मंच पर बल्कि सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस साहित्य के माध्यम से दलित लेखकों ने अपनी आवाज बुलंद की है, जिससे उनके आत्मसम्मान और पहचान को सशक्त बनाया जा सका है। सामाजिक न्याय की अवधारणा को गहराई से समझते हुए यह साहित्य हमें समानता, स्वतंत्रता, और भाईचारे के मूल्यों की आवश्यकता को महसूस कराता है। दलित साहित्य, इस प्रकार, सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण साधन है जो वर्तमान समाज में समावेशिता और न्याय की स्थापना में सहायक है।
Keywords
दलित साहित्य, सामाजिक न्याय, शोषण, सामाजिक परिवर्तन, समानता
Citation
दलित साहित्य में सामाजिक न्याय की अभिव्यक्ति. चेरुकूरि हरिबाबु. 2024. IJIRCT, Volume 10, Issue 6. Pages 1-12. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=2411088