Paper Details
समकालीन युग में मादक द्रव्यों का प्रचलन और ऐतिहासिक काल में उनकी निरन्तरता का अवलोकन
Authors
आशा गुर्जर
Abstract
वर्तमान समय में मादक द्रव्य व्यसन एक अभिशाप के रूप में उभरा है। यह एक ऐसी बुराई है, जिससे इंसान का अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है। नशे के लिए समाज में वर्तमान में शराब, गांजा, भांग, अफीम, जर्दा, गुटखा, तम्बाकू, चरस, स्मैक, ब्राऊन शूगर, कोकिन, हेरोइन इत्यादि घातक मादक द्रव्यों का उपयोग किया जा रहा है। इनके सेवन से व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व सामाजिक रूप से अवहेलना का भी शिकार होता है। साथ ही यह स्वयं की व परिवार की सामाजिक स्थिति को भी नुकसान पहुंचाता है। नशा एक अंतर्राष्ट्रीय विकराल समस्या बन गई है।
समकालीन युग में मादक द्रव्यों के सेवन और अपराध के बीच एक निर्विवाद संबंध है। इन पदार्थों की तस्करी, वेश्यावृत्ति, युवाओं द्वारा बढ़ती हत्या की संख्या, सामाजिक और आपराधिक न्याय संबंधी समस्याऐं इनके दुरूपयोग से जुड़ी होती हैं।1 भारत विश्व के दो सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों - स्वर्ण त्रिभुज क्षेत्र और स्वर्ण अर्द्ध क्षेत्र के मध्य स्थित है। स्वर्ण त्रिभुज में थाईलैण्ड, म्यामार, वियतनाम और लाओस शामिल है। स्वर्ण अर्द्धचन्द्र में - पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान शामिल है। इसलिए इनकी तस्करी भारत में ज्यादा होती है।2 भारत में लोग अफीम की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर पीते हैं। गांजा और चरस की चिलम सुलगाकर दम लगाने से पहले और बाद में यह कहते जाते हैं कि ’’जिसने ना पी गांजे की कली, उस लड़के से लड़की भली।’’
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के भारत में मादक द्रव्यों के सेवन की सीमा व पैटर्न पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण, 2022 में पाया गया कि 20-25 वर्ष की आयु के 31 मिलियन लोग भांग उत्पादों के वर्तमान उपयोगकर्ता थे।3
संयुक्त राष्ट्र संघ कार्यालय, 2018 के सर्वेक्षण के अनुसार बुजुर्गों की अपेक्षा युवाओं में मादक द्रव्यों का सेवन अधिक प्रचलन में है। अनुसंधान बताते हैं कि किशोरों में (12-14 वर्ष) में मादक द्रव्यों के सेवन के ज्यादा रहने की अवधि रहती है।4
पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति की चकाचौंध में खोये परिवारों द्वारा विभिन्न अवसरों पर नशा करना शिष्टाचार और जीवन शैली का प्रतीक बन गया है। भारत के विभिन्न राज्यों में मादक द्रव्य व्यसन की स्थिति सर्वे बततो हैं कि भारत में शराब का सर्वाधिक सेवन त्रिपुरा में किया जाता है वहां कि 62 प्रतिशत आबादी इसका सेवन करती है। इसके बाद दूसरा स्थान छत्तीसगढ़ का आता है जहां 57.2 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं। तीसरे स्थान पर पंजाब आता है जहां 51.70 प्रतिशत जनसंख्या शराब का सेवन करती है।5 संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार, युवा अधिक मादक द्रव्यों का सेवन कर रहे हैं, इसके अनुसार साल 2020 में दुनिया भर में 1.12 करोड़ लोग इसके इंजेक्शन का उपयोग कर रहे थे।6
मादक द्रव्यों की निरंतरता का संबंध प्राचीन सभ्यता के प्रारंभ से ही है। आर्यों के आगमन के बाद से ही मादक द्रव्य प्रचलन में रहे हैं। संस्कृति के प्रारंभ से भोजन के उत्पादन ने मनुष्य को पेय बनाने का भी ज्ञान दे दिया, जिसमें विविध प्रयोग करके मानव ने कुछ मादक पेय पदार्थ बनाना प्रारंभ कर दिया, जिसमें मद उत्पन्न होता था, इसे सामान्यतया तत्कालीन युग में सुरा या सोम के नाम से जाना जाता था। कालांतर में इसका प्रयोग विविध नशों के रूप में किया जाने लगा।
आर्य और अनार्य परंपरा के अनुसार जो असुरों का पेय था, वह सुरा था, समुद्र मंथन के समय देवताओं को अमृत और असुरों को सुरा भेंट की गई थी वस्तुतः पुरापान के पश्चात् उत्पन्न दोषों के कारण इसे असुरों से तादात्म्य किया होगा। ऋग्वैदिक काल में सोम का उल्लेख सुरा से जोड़ा जाता है। सोम को देवता मानना, देवताओं को अर्पित करना, उसे सुरा से तादात्म्य को गलत ठहराता है। रामायण काल में आर्य और अनार्य दोनों के ही सुरापान के उल्लेख मिलते हैं। समुद्र मंथन के समय वरूण की पुत्री वारूणी (सुरा) को अदिति के पुत्र आदित्यो (देवताओं) ने अपनाया था।7
अयोध्याकाण्ड में वर्णन मिलता है कि राम द्वारा सीता को मरैया (प्राकृतिक चीनी को फलों और फूलों के साथ किण्वित करके बनाई गई शराब) भेंट की थी।8 सुश्रुत संहिता में सुश्रुत ने बताया कि वही मदिरा पीनी चाहिए जो सुगंधित, पुरानी और सरस हो, जिससे मन उद्वीपत हो जाए। कफ और वात के विकार दूर हो जाए तथा जिससे सुरूचि और प्रसन्नता उत्पन्न हो।9 सोम आर्यों का मुख्य पेय था। ऋग्वेद के नवे मंडल में सोम की स्तुति के सूक्त मिलते हैं। ऋग्वेद में बताया गया है कि लोग सुरा पीकर दुर्मद हो जाते हैं। जिस तरह आजकल भांग पी जाती है। ऋग्वेद के कवि लोग सोम के गुणों और उसकी आनंद देने वाली शक्ति का वर्णन करते हुए खुशी से उन्मत हो जाते हैं -
’’हे सोम जिस लोक में अक्षय ज्येाति होती है और जहां स्वर्ग स्थित है, उसी उमर और मरण विहीन लोक में तू मुझे ले चल। तू इन्द्र के लिए बह।’’10
ऐसे वाक्य ऋग्वेद के नवें मण्डल में मिलते हैं।
महाभारत काल में मदिरा व अन्य पेय प्रचलन के विवरण मिलते हैं। अभिमन्यु के विवाह के अवसर पर सुरा का इंतजाम दर्शाता है कि वैवाहिक अवसरों, उत्सवों में सुरापान सामान्य था, स्त्रियाँ भी सुरापान करती थी।11 चरक शराब के बारे में कहते हैं कि मन और शरीर को शक्ति देने वाली अन्रिदा, दुख और थकान को दूर करने वाली, भूख, खुशी और पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली होती है। यदि इसे दवाई की तरह लिया जाये तो यह अमृत है अतः इसका प्रयोग शौर्य वृद्धि के लिए किया जाता है।12
मौर्य काल में मादक द्रव्यों के प्रचलन की पर्याप्त जानकारी मिलती है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार मादक द्रव्यों अर्थात् मदिरा/शराब हेतु ’’सुराध्यक्ष’’ की नियुक्ति की जाती थी। बिन्दुसार द्वारा भारत से बाहर से भी मदिरा मंगवाई गई थी। ह्वेनसांग ने अंगूर और गन्ने के रस से बनी हल्की मदिरा का प्रयोग क्षत्रियों में देखा, वैश्य लोग तेज मदिरा का सेवन रते थे वहीं ब्राह्मण और भिक्षु वर्ग अंगूर अथवा इक्षु-रस का प्रयोग करते थे।13
कश्मीर के बारहवीं शताब्दी के राजतरंगिणी (राजाओं की नदी) के परिचय में कश्मीर का वर्णन इस प्रकार मिलता है -
’’अंगूर इस क्षेत्र का एक अच्छी तरह स्थापित, सम्मानित उत्पाद है,
अंगूर की शराब, तला हुआ मांस (भिष्टाभानी) इत्यादि प्रमुख है।’’
मध्यकालीन भारत में मुगलों में मादक द्रव्यों का प्रचलन अत्यधिक मात्रा में देखने को मिलता है। मुगल बादशाह बाबर शराब और अफीम का आदी था, वह अपने साथ काबुल से शराब और अफीम लाया था, उस समय शराब का अर्क और अफीम को माजूम कहते थे। हुमायंू हफीम का शैकीन था। जहांगीर हर वक्त नशे में डूबा रहता था, वह शराब व अफीम का नशा करता था। तुजुक-ए-जहांगीरी में जिक्र करता है कि वह दिन में 20 याला शराब पीता था।14 अबुल फज़ल एक स्थान पर वर्णन करता है कि जहांगीर बार-बार यह कहा करता था कि ’’अगर उसे प्रतिदिन शराब और एक शेर का मांस मिलता रहे तो वह इससे संतुष्ट है।’’
अतः हम कह सकते हैं कि समकालीन युग में मादक द्रव्यों का प्रचलन, इतिहास के प्रारंभ से ही इसकी उत्पत्ति को दर्शाता है। वर्तमान में प्रचलित मादक द्रव्यों जैसे शराब, बीयर, हांडिया, भांग, चरस, ब्राउन शुगर, हेरोइन, रम, महुआ, कोकिन में इत्यादि हमारे समाज तथा देश को खोखला कर रही है। अतः इनके कुप्रभावों के प्रति जनजागरूकता लानी आवश्यक है।
Keywords
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Citation
समकालीन युग में मादक द्रव्यों का प्रचलन और ऐतिहासिक काल में उनकी निरन्तरता का अवलोकन. आशा गुर्जर. 2024. IJIRCT, Volume 10, Issue 1. Pages 1-3. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=2410026