Paper Details
रामधारी सिंह दिनकर के काव्य में पूंजीवाद की स्थिति एक चिंतन
Authors
अजय कुमार मीना
Abstract
हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि ‘दिनकर’ किसी परिचय के मोहताज नहीं है।‘पूंजीवाद’ का अर्थ होता है, जिसके पास अधिक धन होता है, उसके पास ताकत एवं सत्ता दोनों होते हैं। वे मनमाने ढंग से गरीबों का शोषण करते हैं और कानून को भी जैसे चाहे, वैसे उपयोग में लाते हैं। दिनकर जी का मत है कि पूॅंजीवादी व्यवस्था श्रमिकों का शोषण करती है और समस्त उत्पादन-साधनों को अपने अधिकार में कर लेती है।
कवि श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व में आश्चर्यजनक रूप से साम्य देखने को मिलता है। इन्होंने अपने जीवन तथा साहित्य में सर्वत्र अन्याय का विरोध किया है। वे सदैव न्याय का समथर््ान करते रहे। जहाँ तक हमारे आर्थिक-क्षेत्र का प्रश्न है, उनके क्रान्तिकारी विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त होते रहे हैं। दिनकर के इस क्रांतिकारी आर्थिक चिंतन को प्रभावित किया है, कार्ल मार्क्स ने। इसलिए कवि श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (जिन्होंने स्वयं अपने जीवन में भयंकर आर्थिक विषमता का सामना किया था) ने निरन्तर शोषितों एवं पीड़ितों का पक्ष लिया है।
इस प्रणाली का विकास दो दिशाओं में हुआ - कृषि और औद्योगिक। समग्र विश्व के धरातल पर पूँजीवादी का विकास साम्राज्यवाद के रूप में हुआ। धन के असमान वितरण के कारण वर्ग-वैषम्य, विद्रोह का आरंभ, यांत्रिक-शक्ति का उपयोग इत्यादि समस्याएॅं उत्पन्न हुईं। जैसा कि सर्वविदित है, मानव की वैज्ञानिक प्रगति के पश्चात, हमारी सामाजिक व्यवस्था पूँजीवादी युग में बदल गयी है।
Keywords
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Citation
रामधारी सिंह दिनकर के काव्य में पूंजीवाद की स्थिति एक चिंतन. अजय कुमार मीना. 2024. IJIRCT, Volume 10, Issue 3. Pages 1-3. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=2406056