Paper Details
प्रेमचंद के उपन्यासों में उपनिवेशवाद
Authors
सुनील कुमार जाटव
Abstract
उद्योगीकरण के साथ-साथ कई यूरोपीय देशों ने अपनी अस्थित्व स्थापित करने हेतु एशिया के ऐसे देशों को अपने अधीन कर लिया, जहाँ से कच्चा माल अधिकतर उपलब्ध होते हैं। भारत भी उन देशों में से एक है। उन विदेशियों ने अपना धर्म और संस्कृति भी उपनिवेश देशों में प्रचार-प्रसार करने का प्रयास भी किया था। फलस्वरूप भारतीय संस्कृति में उन लोगों की संस्कृति की अच्चाई एवं बुराई मिल गयी थी। उस युग में भारत का महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद से समाज के इस बदलाव को देखा नहीं गया। उन्होंने उपनिवेशवाद के विरुद्ध अपनी कलम द्वारा आवाज बुलंद करना आरम्भ किया और जहाँ तक कि अपनी नौकरी से भी त्याग पत्र दे दिया। उनके कई उपन्यासों में उपनिवेशवाद की दयनीयता दिखाई देती है।
Keywords
उद्योगीकरण, अस्थित्व, धर्म एवं संस्कृति, दयनीयता, आवाज़ बुलंद करना
Citation
प्रेमचंद के उपन्यासों में उपनिवेशवाद. सुनील कुमार जाटव. 2024. IJIRCT, Volume 10, Issue 3. Pages 1-7. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=2406045