Paper Details
भारत में महिला शिक्षा के संवैधानिक प्रावधान : उच्च शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में एक समाजशास्त्रीय अध्ययन
Authors
Jyoti Gupta
Abstract
सामाजिक क्षमताओं का विकास करना है, जिससे वह दैनिक जीवन की मांगों और चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हो। हर बच्चे के पास अद्वितीय व्यक्तित्व लक्षण, रुचियां प्राथमिकताएं, मूल्य, दृष्टिकोण, ताकत और कमजोरियां हैं। पाठ्यक्रम ऐसा होगा जिससे बच्चा अपने अद्वितीयता के अनुरूप दुनिया में अपना अनूठा स्थान खोजने में सक्षम हो, इसके लिए बच्चे का सर्वागीण विकास बेहद जरूरी है।
• समग्र विकास क्या है?
• समग्र विकास क्यों आवश्यक है?
• समग्र विकास के प्रमुख तत्व क्या है? तथा
• निष्कर्ष
समग्र शिक्षा शिक्षार्थी के मन शरीर और आत्मा सहित सभी पहलुओं को शामिल करता है। इसके पीछे दर्शन यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने स्थानीय समुदाय प्राकृतिक दुनिया और मानवतावादी संबंधों के माध्यम से जीवन में पहचान और अर्थ और उद्देश्य पाता है करुणा और शांति जैसे मूल्यों का विकास होता है।
समग्र शिक्षा लोगों के जीवन के लिए आंतरिक श्रद्धा, सीखने के लिए प्रेम, अनुभवात्मक शिक्षा, सीखने के माहौल के भीतर संबंधों और प्राथमिक मानव मूल्यों पर महत्व देता है। समग्र शिक्षा के विकास का इतिहास समग्र शिक्षा का आधुनिक लुक एंड फील दो कारकों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मानवतावादी दर्शन का उदय और 1960 के मध्य में शुरू हुआ सांस्कृतिक प्रतिमान बदलाव। 1970 में मनोविज्ञान में समग्रता आंदोलन की बहुत अधिक मुख्यधारा बन जाने के बाद विज्ञान, दर्शन और सांस्कृतिक इतिहास में साहित्य की एक उभरते निकाय ने शिक्षा को समझने की इस तरीके का वर्णन करने के लिए एक व्यापक अवधारणा प्रस्तुत की एक परिपेक्ष्य जिसे समग्रता के रूप में जाना जाता है। 2000 के दशक की शुरुआत से ऐतिहासिक रूप से अलग शैक्षणिक क्षेत्रों, एक ओर विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित और दूसरी और दूसरी ओर मानविकी, कला और सामाजिक विज्ञान ने नया समय सामान्य पाया है। सामाजिक और व्यवहार विज्ञान को एकीकृत करने और उच्च शिक्षा में विज्ञान, इंजीनियरिंग और चिकित्सा के साथ मानविकी और कला के एकीकरण पर आम सहमति रिपोर्ट में प्रदर्शित किया है।
समग्र शिक्षा के लिए दार्शनिक ढांचा-शिक्षा समग्र शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को समग्र दृष्टिकोण के साथ बौद्धिक, भावनात्मक, सामाजिक, शारीरिक, कलात्मक, रचनात्मक और आध्यात्मिक और क्षमता के विकास से संबंध रखना है। यह छात्रों को शिक्षण की प्रक्रिया में शामिल करना चाहता है और व्यक्तिगत और सामूहिक जिम्मेदारी को प्रोत्साहित करता है। समग्र शिक्षा के सामान्य दर्शन का वर्णन करते हुए इसे दो भागों में विभाजित किया है।
• परमता का विचार और
• दूरदर्शी क्षमता की धारणा
परमता का विचार: अलग-अलग क्षेत्रों में इसकी अलग-अलग व्याख्या की है। धार्मिक रूप से प्रबुद्ध बनने के रुप में आध्यात्मिकता एक महत्वपूर्ण घटक है, क्योंकि यह सभी जीवित चीजों की जुड़ाव देती है और आंतरिक और बाहरी जीवन के बीच सामंजस्य पर जोर देती है। मनोवैज्ञानिक आत्मबोध के रूप में समग्र शिक्षा का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में कुछ बनने का प्रयास करना चाहिए जो हो सकता है। द बेस्ट वर्जन ऑफ हिमसेल्फ अपरिभाषित यएक व्यक्ति उस अंतिम सीमा तक विकसित होता है जहां तक मानव पहुंच सकता है अर्थात मानव आत्मा की उच्चतम आकांक्षाओं की ओर बढ़ना।
विवेकपूर्ण क्षमता के रूप में स्वतंत्रता को मनोवैज्ञानिक अर्थ में लिया है। अच्छा निर्णय है स्वशासन के रूप में, प्रत्येक छात्र अपने तरीके से सीखता है। सामाजिक क्षमता सिर्फ सामाजिक कौशल सीखने से ज्यादा है। परिष्कृत मूल्य के द्वारा चरित्र का विकास होता है। आत्मज्ञान भावनात्मक विकास करता है।
पाठ्यक्रम के लिए समग्र शिक्षा के अनुप्रयोग को परिवर्तनकारी शिक्षा के रूप में वर्णित किया गया है। जहां निर्देश शिक्षार्थी की संपूर्णता को पहचानता है। संपूर्ण व्यक्ति को शिक्षित करने की मांग करते हुए समग्र शिक्षा के केंद्रीय विषयों को स्पष्ट करने के प्रयास किए गए हैं। - समग्र शिक्षा में बुनियादी तीन आर को शिक्षा कहा गया हैय रिश्ते रिलेशन
• जिम्मेदारी रिस्पांसिबिलिटी
• सभी जीवन के लिए सम्मान रेस्पेक्ट
आत्म सम्मान के साथ में सीखना बहुत महत्वपूर्ण है। रिश्तो में सीखने का अर्थ है सामाजिक साक्षरता। सामाजिक प्रभाव को देखना और सीखना। लचीलापन का अर्थ है कठिनाइयों पर काबू पाना है, चुनौतियों का सामना करना, दीर्घ कालीन सफलता सुनिश्चित करने के तरीके सीखना। सौंदर्यशास्त्र के बारे में सीखने का अर्थ है आसपास के सौंदर्य को देखने में प्रोत्साहित करना और जीवन में विस्मय करना सीखाता है। शिक्षक द्वारा प्रत्येक बच्चे को सुनने और बच्चे को अपने भीतर निहित चीजों को बाहर निकालने में मदद करने से समग्रता प्राप्त होती है।
Keywords
Citation
भारत में महिला शिक्षा के संवैधानिक प्रावधान : उच्च शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में एक समाजशास्त्रीय अध्ययन. Jyoti Gupta. 2023. IJIRCT, Volume 9, Issue 5. Pages 1-9. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=2310015