Paper Details
भारतीय संविधान में न्यायपालिका के प्रावधान : एक अध्ययन
Authors
Ravindra Singh Bhati
Abstract
संविधान लागू होने के लगभग 72 वर्षों में न्यायपालिका ने मौलिक अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं व्यवस्थापिका द्वारा बनाये गये कानूनों तथा कार्यपालिका के कृत्यों की व्याख्या संविधान के आधार पर करके न्यायपालिका ने नागरिकों के मौलिक अधिकार की रक्षा में निर्णायक कार्य किया है। हम यहां पर संविधान में उल्लेखित मौलिक अधिकारों की व्याख्या न्यायालय के विभिन्न निर्णयों के संदर्भ में कर रहे हैं।
भारतीय संविधान की खूबसूरती का एक कारण इसमें विस्तार से मौलिक अधिकारों का उल्लेख होना है। मौलिक अधिकारों की रक्षा के समुचित प्रावधान भी संविधान हैं। संविधान सभा में मौलिक अधिकारों पर पर्याप्त बहस देखने को मिलती है। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होते समय सात मौलिक थे, वर्तमान में छः मौलिक अधिकार है।
मूल अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास की न्यूनतम आवश्यकतायें है। मूल अधिकार राज्य के विरूद्ध प्राप्त होते है। यदि राज्य की स्थापना के सामाजिक समझौता सिद्धान्त का अध्ययन किया जाए तो उससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य की स्थापना ही समाज में व्यवस्था को स्थापित करने अथवा मत्स्य न्याय (बड़ी मछली द्वारा छोटी मछलियो का आहार बना लेना) को समाप्त करने हेतु हई।भाग तीन को भारतीय संविधान का ’मेग्नाकार्टा’ कहा जाता है। दरअसल 1208 में इंग्लैण्ड के राजा द्वारा इंग्लैण्ड की जनता को दिये गये अधिकारों के दस्तावेज को ’मेग्नाकार्टा’ कहा जाता है। भारतीय संविधान के भाग तीन में भी नागरिकों के अधिकारों का उल्लेख होने के कारण इसकी तुलना ’मेग्नाकार्टा’ से की जाती है। कबीला सस्कृति के युग में सभी लोगों ने अपने अधिकार राज्य के पक्ष के त्याग दिये थे। लेकिन इससे राज्य रूपी सस्था ने शोषक का रूप धारण कर लिया। राज्य के शोषक स्वरूप के विरूद्ध लोगों द्वारा किये गये संघर्ष के फलस्वरूप लोगो को कुछ अधिकार दिये गये, उन्हें ही मूल अधिकार कहा जाता है। मूल अधिकार राज्य के विरूद्ध होने के कारण ही अधिकाश मूल अधिकारों की प्रकृति निषेधात्मक होती है।
Keywords
Citation
भारतीय संविधान में न्यायपालिका के प्रावधान : एक अध्ययन. Ravindra Singh Bhati. 2023. IJIRCT, Volume 9, Issue 4. Pages 1-9. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=2308020