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सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता - भारत की दावेदारी
Authors
डॉ. एल.एन. नागौरी
Abstract
राष्ट्र संघ की परिषद अनेक संगठनात्मक एवं प्रक्रियात्मक खामियों की वजह से द्वितीय विष्व युद्ध को रोकने में असफल रही, राष्ट्र संघ की असफलता से अर्न्तराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा हेतु पुनः एक और अधिक प्रभावी संगठन की स्थापना की आवष्यकता महसूस की गयी किन्तु साथ ही इस यथार्थ का भी अहसास हुआ कि विष्व में कुछ सर्वाधिक सक्षम एवं सषक्त राज्य है। जो विष्व राजनीति को प्रभावी ढंग से नियंत्रित, संचालित एवं संतुलित करते रहते है एवं भविष्य में भी विष्वशांति एवं सुरक्षा इन देेषों के सहयोग एवं सामंजस्य पर ही निर्भर करेगी अतः प्रस्तावित नये संगठन में इनकी विषेष भूमिका होनी ही चाहिए। (डम्बर्टन ऑक सम्मेलन में सीमित सदस्य संख्या वाली कार्यपालिका जैसे अंग की कल्पना की गयी जिसका प्राथमिक दायित्व ष्विष्वषांति की सुरक्षाष् हो) तत्पष्चात सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में सुरक्षा परिषद को संयुक्त राष्ट्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग बना दिया गया जिसमें 5 महाषक्तियों 1.सोवियत संघ 2.संयुुक्त राज्य अमेरिका, 3.ग्र्रेट ब्रिटेन, 4. फ्रांस एवं 5.चीन को सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाकर विष्व संगठन एवं विष्व राजनीति में विषिष्ठ दर्जा प्रदान कर उनके निषेधाधिकार एवं विषेषाधिकारों को व्यावहारिक व विधिक मान्यता प्रदान करते हुए उनके विषिष्ठ प्रस्थिति एवं भूमिका को स्वीकार किया गया। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद राष्ट्रसंघ की परिषद का परिष्कृत रुप मानी जा सकती है लेकिन इस नवस्थापित अभिकरण की अनेक विलक्षणताएं इसको मौलिक स्वरुप प्रदान करती है। मूल चिन्तन में सुरक्षा परिषद को महासभा से भी ज्यादा प्रभावी बनाया गया था, एक तरफ जहां महासभा विष्व जनमत का प्रतिनिधित्व करने वाली तथा विष्व संसद सदृष्य संगठन माना जाता है वहीं सुरक्षा परिषद विष्व के सर्वाधिक प्रभावी सषक्त एवं विष्व शांति एवं सुरक्षा बनाये रखने में निर्णायक भूमिका निर्वाह करने वाले राज्योें का प्रतिनिधित्व करती है। इसीलिए पामर एवं पार्किन्स ने इसे श्संयुक्त राष्ट्र की कुंजी माना है।
Keywords
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Citation
सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता - भारत की दावेदारी. डॉ. एल.एन. नागौरी. 2023. IJIRCT, Volume 9, Issue 3. Pages 1-5. https://www.ijirct.org/viewPaper.php?paperId=2305025